पूरे देश में जन्माष्टमी का उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। इस दौरान गोपाल श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भजन-कीर्तन आदि के बीच मनाया गया। आपको बता दें, जन्माष्टमी के दूसरे दिन दही हांडी का पर्व मनाया जाता है। यह उत्सव भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी और नवमी के दिन आयोजित किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की लीलाओं से दही हांडी का उत्सव जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र और गोवा में दही ​हांडी का पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है.

किंतु अब देश के अनेक जगहों पर भी इसका आयोजन होने लगा है। महाराष्ट्र में इस पर्व को गोपालकाला के नाम से भी जाना जाता है। इस साल कोरोना संक्रमण के चलते दही हांडी पर्व प्रतीकात्मक रूप में ही मनाया जाएगा, साथ ही कोरोना दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। आइए जानें दही हांडी पर्व क्यों मनाया जाता है.

भगवान श्रीकृष्ण को बचपन में मक्खन, दूध और दही बहुत पसंद था। श्रीकृष्ण गोकुल में गोपों और बाल सखाओं के साथ गोपियों के घरों में छिपकर उनका सारा दही, माखन, दूध, आदि खाकर जाते थे। कृष्ण और उनके सखाओं को माखन, दूध आदि न मिले, इसलिए गोपियां उनको मटके में रखकर रस्सी की सहायता से ऊंचाई पर लटका देती थीं। किंतु श्रीकृष्ण कहां मानने वाले थे। उनकी नेत्रों से कुछ नहीं बचता था। भगवान श्रीकृष्ण की इसी बालचरित से प्रेरित होकर जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी पर्व मनाया जाने लगा.