आख़िरकार 10 वर्ष बाद हुई, गठबंधन युग की वापसी
लोकसभा के चुनाव नतीजों ने एक्जिट पोल के साथ अन्य अनेक अनुमानों को भी गलत साबित किया। परिणाम कई दृष्टि से अप्रत्याशित हैं। लेकिन लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि जनता के मन में क्या है, इसकी थाह लेना कठिन होता है। नतीजों ने बताया कि जो भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ चार सौ पार का नारा लगा रही थी, उसके लिए तीन 300 का आकड़ा पार करना भी एक चुनौती बन गया। चुनाव नतीजों से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने आशा से कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन किया। जहां कांग्रेस ने अपनी सीटें अच्छी-खासी बढ़ा लीं, वहीं समाजवादी पार्टी, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस ने भी अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन कर भाजपा को चौंकाया। चुनाव नतीजों ने कांग्रेस और उसके साथ खड़े दलों को राजनीतिक बल देने के साथ उनके मनोबल को भी बढ़ाने का काम किया है। कांग्रेस वापसी की राह पर आती दिख रही है।
कांग्रेस और सहयोगी दलों ने भाजपा की ओर से आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने की जो हवा बनाई, वह भी कुछ राज्यों और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में असर करती दिखी। भाजपा को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में ही लगा। इसका कारण कमजोर प्रत्याशी और नेताओं की आपसी खींचतान भी दिखती है और जाति-पंथ की राजनीति भी। केंद्रीय मुद्दे के अभाव में स्थानीय मुद्दे भी कहीं अधिक असरकारी हो गए और इसी कारण अलग-अलग राज्यों में हार-जीत के कारण भी भिन्न-भिन्न दिख रहे हैं। विपक्षी दल तो जनता को लोकलुभावन वादों से लुभाने में सफल रहे, लेकिन भाजपा विकसित भारत और देश को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने जैसे वादों से जनता के एक वर्ग और विशेष रूप से निर्धन-वंचित तबके को उतना आकर्षित नहीं कर सकी। इस तबके को इन वादों में अपने लिए कुछ खास न दिखाई दिया।
बहुमत के साथ सहयोगी दलों संग सरकार चलाना अलग बात है और उन पर निर्भर होकर शासन करना अलग बात। इस बार प्रधानमंत्री मोदी के सामने गठबंधन सरकार चलाने की चुनौती होगी। इसके चलते निर्णायक प्रधानमंत्री की उनकी छवि पर असर पड़ सकता है और इसका प्रभाव शासन संचालन में भी दिख सकता है। चुनाव नतीजों से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने आशा से कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन किया। जहां कांग्रेस ने अपनी सीटें अच्छी-खासी बढ़ा लीं, वहीं समाजवादी पार्टी, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस ने भी अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन कर भाजपा को चौंकाया। चुनाव नतीजों ने कांग्रेस और उसके साथ खड़े दलों को राजनीतिक बल देने के साथ उनके मनोबल को भी बढ़ाने का काम किया है।
ब्यूरो रिपोर्ट
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