मातृ शक्ति तुभ्यं नमः उन्नत समाज के निर्माण में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका : श्वेता भारती
गाजियाबाद नामा। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संतुलन प्रकल्प के अंतर्गत दिन रविवार को खजान सिंह धर्मशाला, पटेल नगर सेकंड , गाज़ियाबाद में “मातृ शक्ति तुभ्यं नमः” नामक एक विशेष कार्यक्रम का आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों लोग सम्मिलित रहे। दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी विदुषी श्वेता भारती , साध्वी ज्योति भारती एवं संत समाज द्वारा सभी को मातृ शक्ति के वास्तविक स्वरुप से अवगत कराया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सामूहिक साधना सत्र के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में विभिन्न रोचक गतिविधियां शामिल थीं, जैसे कि हमारे भारतीय इतिहास में अपने बच्चे को श्रेष्ठ व्यक्तित्व के रूप में गढ़ने वाली माताओ के उदहारण देकर उनकी चारित्रिक गुणवत्ता के विषय में बताया गया जैसे माता सुभद्रा, माता शकुंतला, राजमाता जीजाबाई, महारानी कयाधु इत्यादि। इन माताओं द्वारा अपने बच्चों की उत्तम परवरिश से समाज के सामने कितने ही महान उदाहरण उभर कर आये। एक बच्चे के जीवन में माँ को पहली शिक्षिका माना जाता है। बच्चे के जीवन को संवारने में माताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। परंतु इस हेतु एक माँ को अपने व्यक्तित्व को किस भाँति गढ़ना है? इस विषय पर भी चर्चा की गई। प्रश्नोत्तरी के साथ एवं उदाहरण देते हुए समझाया गया कि किस प्रकार माता सुनीति ने अपने पुत्र ध्रुव को अच्छे संस्कार दिए और उन्होंने उन्हें प्रभु भक्ति की राह पर अग्रसर किया। ठीक इसी प्रकार मां कयाधु ने अपने तप से अपने पुत्र प्रह्लाद के जीवन में जन्म से ही भगवान के प्रति दृढ विश्वास जगाया, जिससे वो ना केवल प्रभु भक्त बने, बल्कि एक योग्य राजा भी बने ।
साधवी ने हमारे आध्यात्मिक ग्रंथो की रचनाएँ लेते हुए बताया : माता सूँ हरि सौ गुण, जिनसे सौ गुरुदेव। प्रेम करै औगुन हरै, चरणदास शुकदेव।। अर्थात् जिस प्रकार संसार में सबसे बड़ा रिश्ता माँ का होता है, उससे भी बढ़कर भगवान का रिश्ता होता है, और हरि से भी बडे़ होते हैं गुरुदेव। वह एक गुरु ही होते हैं। जो अपने शिष्य के लिए माता, पिता, बंधु, सखा सारे रिश्ते निभाते हैं। साध्वी ने लिंग समानता व महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम संतुलन के विषय में बताते हुए समझाया- भौतिक माँ के साथ-साथ प्रकृति माँ, माँ भारती और सबसे प्रमुख माँ ‘एक ब्रह्मनिष्ठ आध्यात्मिक गुरु’ (गुरु माँ) का योगदान हमारे जीवन में अतुलनीय हैं। माँ की भूमिका एक व्यक्ति एवं समाज के निर्माण में अति महत्वपूर्ण है। आध्यात्मिक क्रांति के द्वारा ही ‘माता निर्माता भवति’ का संकल्प समाज की उन्नति में सिद्ध हो सकता है। अंत में प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम को विराम दिया गया।
ब्यूरो रिपोर्ट
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