होली मिलन समारोह एवं नवसस्येष्टि यज्ञ हर्षोल्लास से संपन्न

गाजियाबाद। आर्य समाज कवि नगर द्वारा होली मिलन समारोह में आचार्य प्रमोदशास्त्री के ब्रह्मत्व में नवस्सेयष्टि यज्ञ सम्पन्न हुआ,यज्ञ के उपरान्त उन्होंने यज्ञमान दम्पति ऋतु गौतम एवं संजय शर्मा को आशीर्वाद देते हुए होली पर्व पर प्रकाश डाला। सुप्रसिद्ध भनोपदेशक सुन्दर आर्य,राज कुमार शास्त्री ने होली के गीतों की सुन्दर प्रस्तुति दी जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। मुख्य वक्ता आचार्य चन्द्र पाल शास्त्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि होली रंगों का त्यौहार है,रंगों का हमारे जीवन मे बहुत प्रभाव है।होली के रंग हमे विभिन्न संदेश देते है।जैसे की हमारा राष्ट्रीय ध्वज विभिन्न रंगों से मिलकर बना है।हरेक रंग का अलग-अलग महत्व है।रंगों का हमारे मन और शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है।रंगों से शरीर मे होने वाले परिवर्तन पर चर्चा की। पुराने जमाने मे टेसू के फूलों और रंगों से होली खेलने की प्रथा थी। फूलो से शरीर की त्वचा पर अच्छा प्रभाव पड़ता था।होली प्रज्वलित कर उसमें गोघृत, इलायची,कपूर व सामग्री डालकर होली के चारो और परिक्रमा करने से शरीर के सभी रोम छिद्र खुल जाते है ओर स्वाइन फ्लू जैसे अनेको रोगों से निजात मिलती है,निष्कर्ष यह है कि हमारे हर त्यौहार का वैज्ञानिक महत्व होता है।यह त्यौहार हमे आपस मे सभी गिले शिकवे भूलकर,फिर से जोड़ने का अवसर देता है।उन्होंने आगे कहा कि होली ईश्वर,जीव ओर प्रकृति के समन्वय व आत्मचिंतन का त्यौहार है, समन्वय बनाकर ही कुरीतियों को दूर करना होगा और जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करेंगे तभी होली के पर्व मनाने की सार्थकता होगी। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने “जो होली सो हो-ली भुला दो उसे,आज मिलने मिलाने का त्यौहार है,त्याग दो छल कपट द्वेष की भावना,प्रेम गंगा बहाने का त्यौहार है,सुनाकर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया।आर्यवीर अयन एवं अथर्व तथा गायक नरेश चन्द्र,मृदुला अग्रवाल ने भी होली की हांस्य रचना के माध्यम से श्रोताओं को सराबोर कर दिया।वैदिक विद्वान डा देव शर्मा ने कहा कि होली एक प्राकृतिक पर्व है, संस्कृत शिक्षा के अभाव में हमें वास्तविक तथ्यों का ज्ञान नहीं हो पाता।आइये जानें होली का यथार्थ तिनको की अग्नि में भूने हुए अधपके फली युक्त फसल को होलक(होला)कहते हैं।अर्थात् जिन पर छिलका होता है जैसे हरे चने आदि।ऋतु के अनुसार,दो मुख्य प्रकार की फसलें होती हैं।1)खरीफ,2) रवि,रवि की फसल में आने वाले सभी प्रकार के अन्न को होला कहते है।”वासन्तीय नवसंस्येष्टि होलीकोत्सव वसन्त ऋतु में आई हुई रवि की नवागत फसल को होम हवन मे डालकर फिर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने का नाम होली है।यह पर्व प्राकृतिक है ऐतिहासिक नही है और बाद में होला से ही होली बना है।उन्होंने स्तुति अर्थात गुणों की पूजा करने पर तथा भक्ति में माता पिता के साथ यज्ञकर शिक्षा रूपी ज्ञाना र्जन करने पर बल दिया। मुख्य अतिथि वेद प्रकाश तोमर ने होली पर्व की सभी को बधाई दी। मंच संचालक वी के धामा जी ने स्नेह,प्यार और उमंग के साथ होली का त्यौहार मनाने पर बल दिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से सर्वश्री आलोक राघव,विजय मित्तल,सत्यपाल आर्य,डा प्रमोद सक्सैना,तेज पाल आर्य,सत्यपाल आर्य,हरबीर सिंह,नरेंद्र आर्य, लक्ष्मण कुमार चौहान,सुमन चौहान,श्रीमती आशा आर्या, सत्यवंती गुप्ता,विनोद अग्रवाल, सुरेश प्रसाद,तेजपाल सिंह आर्य, राजेन्द्र सिंह आर्य आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे। होलिकौत्सव पर्व पर संरक्षक श्री ब्रिज पाल गुप्ता ने शांतिपाठ कराया व स्नैक्स वितरण के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

ब्यूरो रिपोर्ट
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