जानिए “केतु ग्रह” के बारें में

“केतु ग्रह”

केतु केवल बुरे नहीं, अच्छे प्रभाव भी दिखाता है। यदि केतु शुभ भावों में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो शुभ परिणाम आता हैं। उदाहरण के तौर पर केतु यदि कुंडली के तृतीय भाव में हो तो वह जातक को महा धनवान, ऐश्वर्य संपन्न और भोग विलासी बनाता है, लेकिन यदि पंचम भाव में हो तो व्यक्ति को चालबाज, षड्यंत्रकारी, आपराधिक प्रवृत्ति वाला और धूर्त बनाता है।

लग्न भाव में केतु होने पर जातक दुर्बल, कृशकाय, कमर में पीड़ा रहती है। वातरोग से पीडि़त, उदास, परेशान, स्त्री चिंता से पीडि़त, झूठा, दंभी, चंचल, डरपोक, दुराचारी, महामूर्ख, अनेक शत्रुओं से पीडि़त होता है। लग्न में केतु होने पर जातक के जीवन का पांवचां वर्ष महाकष्टकारी होता है। यहां तक कि उसे मृत्यु के समान कष्ट भोगना पड़ता है। ऐसे जातक के कार्य निरंतर असफल होते हैं। वृश्चिक का केतु लाभदायक होता है।

द्वितीय भाव: द्वितीय भाव में केतु हो तो जातक दुष्टात्मा, अशोभनीय कार्य करने वाला, कुंटुब विरोधी, मुख रोग से पीडि़त, नीच-दुष्ट, दुर्बुद्धि लोगों का साथ देने वाला होता है। ऐसा जातक अपने परिवार, धर्म, समाज का विरोधी होता है इसलिए इसे अक्सर अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। फालतू के कार्यों में धन गंवाता है और पूर्वजों द्वारा संचित संपत्ति का नाश करता है। केतु स्वग्रही सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु राशिगत हो तो श्ुभ होता है तथा सुखों का भोग करता है।

तृतीय भाव: तीसरे भाव में केतु हो तो जातक महातेजस्वी, बलशाली, समस्त धन-ऐश्वर्य को भोगने वाला होता है। ऐसा जातक चंचल, वातरोगी, अटक-अटककर बोलने वाला, व्यर्थ के प्रपंचों में उलझने वाला, सभी लोगों का प्रिय लेकिन मानसिक रूप से चिंताग्रस्त होता हैं। भाइयों से सुख नहीं मिलता लेकिन बहनों का पूरा साथ मिलता है। यदि केतु के साथ अन्य पाप ग्रह हों तो भाइयों की मृत्यु हो जाती

चतुर्थ भाव: जिस जातक की कुंडली के चतुर्थ भाव में केतु हो उसे मां का सुख नहीं मिलता। उसका कोई मित्र भी नहीं होता और यदि मित्र हों तो वह उनसे धोखा पाता है। ऐसा जातक पिता के लिए भी हमेशा कष्टकारक होता है। काम के प्रति इसमें कोई उत्साह नहीं रहता। इसलिए बार-बार नौकरी छोड़ देता है या बिजनेस बदल देता है। सिंह और वृश्चिक राशि में चतुर्थ भाव में केतु हो तो माता-पिता का सुख मिलता है, लेकिन वह भी बहुत कम समय के लिए।

पंचम भाव: कुंडली के पंचम भाव में केतु हो तो व्यक्ति आपराधिक प्रवृत्ति का, चालबाज, धोखेबाज, षड्यंत्रकारी होता है। बलवाल, शक्तिशाली होता है, लेकिन अपने अधिकारों, शक्तियों का दुरुपयोग करता है। ऐसा व्यक्ति वीर होते हुए भी कई बार दासवृत्ति अपनाता है। इसकी संतानें बहुत कम होती हैं और प्रथम संतान कन्या होती है। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति प्रायः असफल होते |

ज्योतिष सलाहकार, रिलेशनशिप एडवाइजर, लव गुरु, एस्ट्रो “सैंटी”